( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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लिंग पुराण में योग

    1 Author(s):  DR. NAVEEN GAHLAWAT

Vol -  8, Issue- 9 ,         Page(s) : 168 - 174  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

योग हिन्दु जाति की सबसे प्राचीन और समीचीन सम्पति है। पातजल योग सूत्र में योग शब्द समाध्यर्थक ‘युज्‘ धातु से निष्पन्न माना गया है भाष्यकार व्यास के मतानुसार योग एवं समाधि पर्यायवाची है। 1 अमरकोष में योग शब्द का प्रयोग सन्नहन, उपाय, ध्यान,संगति तथा युक्ति अर्थो में हुआ है। 2 अर्थात अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसके उपायों के साथ स्वंय को जोेड़ लेना योग कहलाता है। योग वासिष्ठ के अनुसार योग वह युक्ति है जिसके द्वारा संसार सागर से पार जाया जा सकता है। 3 श्रीमद्भगवद् गीता द्वितीय अध्याय के अनुसार समत्व ही योग है अर्थात मानसिक संतुलन को योग माना जाता है। 4

1. योगः समाधिः । व्यास भाष्य, पृ0 1-1
2. योगः सन्नहनोपायध्यान संगीत युक्तिषु। - अमरकोष - 191/32
3. अस्माद्वतेन सिध्यति यज्ञो विपश्चितश्चन स धीनां योग मिन्वति। - ऋग्वेद 1/18/7
4.योगस्थः कुरू कर्मणि संग त्यक्तवा धनंजय।
सिद्वयसिद्वयोः समौभूतात्वा समत्वं योग उच्यते।। - गीता - 2/48
5. सर्वार्थज्ञान निष्पतिरात्मनो योग उच्यते - लिंगपुराण 1/6/3
6. निरूद्वेन्द्रियवृत्तेस्तु योगसिद्विर्भविष्यति।
योगो निरोधो वृत्तेषु चित्तस्य द्विजसत्तमाः - लिंगपुराण - 1/6/6
7. शिवमहापुराण - 7/2/10
8. यम नियमासन प्राणयाम प्रत्याहार धरणा ध्यान समाधयोडष्टावंगनि। - योगसूत्र - 2-29
9. योग वार्तिक पृ0 239
10. योग वार्तिक पृ0 242
11. तत्व वैशारदी पृ 277
12. भोजवृति पृ0 220
13. शिवमहापुराण - 7/2/37/14-15
14. साधनानयष्टधा चास्य कथितानीह सिद्वये - लिंग पुराण - 1/6/7
15. लिंग पुराण - 1/6-8,9,10
16 तमस्युपरमश्चैव यम इत्यभि धीयते। - लिंग पुराण - 1/6/10
17. अहिंसा, सत्य अस्तेय ब्रह्रमचर्य अपरिग्रहाः यमा। - योग सूत्र - 2/30
18. अहिंसा सत्यमस्तेयं ब्रहा्रचर्या परिग्रहः।
यम इत्युच्यते सद्भिः पंचावयवयोगतः।। - शिवमहापुराण - 7/2/37/18
19. अहिंसा प्रथमो हेतुर्यमस्त यामिनां वश
अहिंसा सत्समस्तेयम् ब्रहा्रचर्य परिगग्रहौ।। - लिंगपुराण 1/6/10-11
20. आत्मवत्सर्वभूतानां हितायैव प्रवर्तनम्।
अहिंसासैषा समाख्याता या चात्मज्ञानसिद्विदा।। -लिंगपुराण - 1/6-12
21. अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधै वेर त्यागः। - योग सूत्र - 2/35
22. लिंगपुराण  - 1/6/13-14
23. सत्यंयथार्थे वांगमनसे। यथा दृष्टं यथानुमितं यथाश्रुतं।
तथा वांगमनश्चेति परत्रं स्वबोधसंक्रान्तये वागुक्तां।। - व्यासभाष्य - 2/30
24. लिंगपुराण - 1/6-15
25. लिंगपुराण - 1/6-16,17,18,28
26. विषयाणामर्जन रक्षण क्षय संग हिंसा दोष दर्शनाद स्वीकरणम् परिग्रहः। - व्यास भाष्य 2/30
27. शौच सन्तोष तपः स्वाध्यायेश्वपरं प्रणिधानानि नियम। - पांतजलि योग दर्शन - 2/32
28. शौचभिज्या तपो दानं स्वाध्यायोपस्थनिग्रहः।
व्रतोप वासमौनं च स्नानं च नियमा दश।। - लिंगपुराण - 1/6/29-30
29. स्थिरं सुख्मासनम् - पातंजलि योग दर्शन - 2/46
30. शिवमहापुराण - 7/2/37,20
31. नियमः स्यादमीह च शौचं तुष्टिस्तस्तथा। - जपः शिवप्रणिधानं पद्मकाद्यास्तथासनम्। 1/6/30
32. प्राणापान निरोधस्तु प्राणायामः प्रकीर्तितः। - लिंगपुराण - 1/6/46
33. तस्मिन्सति श्वास प्रश्वास योर्गति विच्छेदः प्राणायामः। - पातंजल योग दर्शन - 2/49
34. पातंजल योग दर्शन पृ0 302
35. शिवमहापुराण - 7/2/37,21
36. लिंग महापुराण - 1/6/47-50
37. स्वविषयेयासंप्रयोगे चित्तस्वरूपानुकार इवेन्द्रियाणां प्रत्याहारः पातंजल योग दर्शन - 2/54
38. स्वविषये संप्रयोगाभावे चित्तस्वरूपानुकार - व्यास भाष्य - 2/54
39. निग्रहो हृा्रपहृ्रतयशु प्रसक्तानीन्द्रियाणि च।
विषयेषु समासेन प्रत्याहारः प्रकीर्तितः। - लिंगपुराण - 1/6/41,42
40. धारणा नाम चित्तस्य स्थानबन्धः समासतः।। - शिवमहापुराण - 7/2/37,48
41. चित्तस्य धारणा प्रोक्ता स्थानबन्धः समासतः।। - लिंग महापुराण - 1/6/42
42. तत्रैकचित्तता ध्यानं प्रत्ययँातरवर्जितम्। - लिंग महापुराण - 1/6/43
43. शिवमहापुराण - 21/5/12
44. तदेवार्थमात्रनिर्भासं स्वरूप शून्यमिव समाधिः। - पातंजल योगदर्शन - 3/3
45. तज्जयात् प्रज्ञालोकः। - पातंजलि योग दर्शन - 3/5
46. शिवमहापुराण - 7/2/37/61

47. यदर्थमात्रनिर्भासं स्तिमितोदधिवत् स्थितम्।
स्वरूपशून्य वद्भानं समाधिस्थरभिधीयते।। - शिवमहापुराण - 7/2/37,62
48. चिद्भासमर्थमात्रस्य देह शून्यमिव स्थितम् समाधिः।। - लिंगपुराण - 1/6/44
49. यद्यस्ति मरणं पूर्वं योगाद्यनुपमर्दतः।
सघः साधयितुं शक्यं येन स्यान्नात्महानरः।। - शिवमहापुराण - 7/2/37/3
50. योगिनों न प्रपद्यन्ते स्वात्मप्रत्ययकारणात्।
योगिनाम् च वपुः सूक्ष्मंः भवेत्प्रत्यक्षमै वरम्।। - शिवमहापुराण - 7/2/38/30
51. शिवमहापुराण - 7/2/39/29
52. अणिमादिप्रदाः सर्वे सर्वे ज्ञानस्य दायकः। - लिंगपुराण - 2/109/17
53. सर्ववेदागमाभोज मकरन्दः सुमध्यमे।
पीत्वा योगाभूतम् योगी मुच्यते ब्रहृा्रवित्तम्।।
एवं पाशुपतं योगं योगैश्वर्यमनुत्तमम्।। - लिंगपुराण - 2/109/25-26
54. लिंगपुराण - 1/6/79,80
55. सुगुप्त शुभे रम्ये गुहायां पर्वतस्य तु।
भवक्षेत्रे सुगुप्ते वा भवारामे वनेपि वा।।
गृहे तु सुशुभे देशे बिजने जन्तुवर्जिते।
अयतनिर्मले सम्यक् सुप्रलिप्ते विचित्रिते।।
दर्पणोदरसकाशे कृष्ण गुरू सुधूपिते।
नानापुष्पसमाकीर्णे वितानोपरि शोभिते।।
फल पल्लव मूलाढ्ये कुशपुष्पसमन्विते।।
समासनस्थो योगागान्यसेद्वषितः स्वयम्।
प्रणिपत्य गुरूं पशचाद्भवं देवी विनायकम्।। - लिगंपुराण - 1/6/81-85

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