( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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पिछड़े बालकों के शैक्षणिक विकास में समावेषी षिक्षा का महत्त्व

    1 Author(s):  KUMAR BIGYANA NAND SINGH

Vol -  8, Issue- 11 ,         Page(s) : 47 - 51  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

समावेशी षिक्षा से तात्पर्य ऐसी षिक्षा प्रणाली से है, जिसमें प्रत्येक बालक को चाहे वह पिछड़ा हो या सामान्य या फिर विषिष्ट, बिना किसी भेदभाव के, एक साथ एक ही विद्यालय में, सभी आवष्यक तकनीकों व सामग्रियों के साथ, उनकी सीखने-सिखाने की जरूरतों को पूरा किया जाये। समावेषी षिक्षा कक्षा में विविधताओं को स्वीकार करने की एक मनोवृत्ति है जिसके अन्तर्गत विविध क्षमताओं वाले बालक सामान्य षिक्षा प्रणाली में एक साथ अध्ययन करते हैं। इसके अनुसार प्रत्येक बालक अद्वितीय है और उसे अपने सहपाठियों की तरह कक्षा में विविध प्रकार के षिक्षण की आवष्यकता हो सकती है। बालक के पीछे रह जाने पर उसे दोषी नहीं ठहराया जाता है, बल्कि उसे कक्षा में भली-भाँति समाहित न कर पाने पर षिक्षक की जबाव देही सुनिष्चित की जाती है। जिस प्रकार हमारा संविधान किसी भी आधार पर किये जाने वाले भेदभाव का निषेध करता है, उसी प्रकार समावेषी षिक्षा विभिन्न ज्ञानेद्रिय, शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक, आर्थिक आदि कारणों से उत्पन्न किसी बालक की विषिष्ट शैक्षिक आवष्यकताओं के बावजूद उस बालक को अन्य बालकों से भिन्न न देखकर उसे एक स्वतंत्र अधिवासकत्र्ता के रूप में देखती है। वस्तुतः समावेषी षिक्षा प्रणाली के सभी बालक, पिछड़े हो या सामान्य व विषिष्ट, एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर एक ही विद्यालय में षिक्षा ग्रहण करते हैं। शब्दावली: समावेषी षिक्षा, पिछड़ा बलाक, मनोवृत्ति, ज्ञानेद्रिय, बौद्धिक, अधिवासकत्र्ता ‘पिछड़ापन’ विद्यालयों की अति गूढ़ व जटिल समस्या है। इस समस्या को अधिकतर अध्यापक हल करने का प्रयत्न नहीं करते। वे यह कहकर कि बालक ‘पिछड़ा’ है समस्या का अन्त कर देते हैं। यह उचित ढंग नहीं है क्योंकि यह तो हो सकता है कि पिछड़ेपन का करण बालक की मंदबुद्धि हो सकती है, किन्तु यदि हम प्रत्येक पिछड़े बालक की विषेषता मन्दबुद्धि ही समझे तो यह भ्रमात्मक है क्योंकि पिछड़ेपन के अन्य बहुत से कारण हो सकते हैं। षिक्षा के संदर्भ में पिछड़े बालक वे होते हैं जो किसी तथ्य को बार-बार समझाने के बावजूद नहीं समझते व औसत बालकों के समान प्रगति नहीं कर पाते। ये पढ़ने-लिखने में कमजोर होते हैं व कई बार असफल होते हैं किन्तु सभी पिछड़े बालक मंदबुद्धि नहीं होते हैं यद्यपि मानसिक रुप से निरूद्ध सभी बालक शैक्षिक पिछड़ेपन के षिकार होते हैं किन्तु अनेक सामान्य बुद्धि के बालक भी शैक्षिक प्रगति में पिछड़ जाते हैं बर्ट ने लिखा है - ‘‘पिछड़ा बालक वह है जो अपने स्कूल जीवन के मध्यकाल में अपनी कक्षा से नीचे की कक्षा का कार्य नहीं कर सकता, जो कि उसकी आयु के लिए सामान्य कार्य है।’’

01. मदान, पूनम एवं पाण्डेय, रामषक्ल, समसामयिक भारत और षिक्षा, अग्रवाल पब्लिकेषन, आगरा, 2016-17, पृ.-286
02. बिष्ट, आभारानी एवं सक्सेना, स्वाति, विषिष्ट बालक, अग्रवाल पब्लिकेषन्स, आगरा, 2009, पृ.-52
03. शर्मा, मधुलिका, पिछड़ा और वंचित बालक, कारण, पहचान एवं उपचार, कनिष्क पब्लिषर्स, नई दिल्ली, 2009, पृ.-27
04. नारंग, एम. के., समावेषी षिक्षा, अग्रवाल पब्लिकेषन्स, आगरा, 2015-16, पृ.-250

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