( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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लोक-कला एक अध्ययन

    1 Author(s):  HEMA SHISHIR TRIVEDI

Vol -  8, Issue- 11 ,         Page(s) : 65 - 71  (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

लोक कला हमारे प्रतिदिन के जीवन के विभिन्न रूपों में गुथी है । यह कला शास्त्रीय बंधनों से मुक्त होती है । इसकी ऐतिहासिक कला परम्परा का अपना अलग ही स्वरूप है । लोककला धार्मिक भावनाओं और आध्यात्मिक अनुभवों पर विशेष आधारित है ।१ इसमें मूल सांस्कृतिक विशेषताओं एवं मौलिक परम्पराओं का परित्याग नहीं किया जाता है, बल्कि नव चेतना का वास इसके अन्त:करण में यथावत् रहता है । लोक मानस सृजन परम्परा एवं संस्कृति की मूल भावनाओं से सदा ओतप्रोत रहा है ।

  1. एज्युकेशनल pसग्नीpफकेशन्स ऑफ इंpडpजन्स फाेक आट©, पृ. 27
  2. बसंत pनगु©णे, ’’लाेक संस्कृpत‘‘, पृ. 20
  3. बसंत pनगु©णे, ’’लाेक संस्कृpत‘‘, पृ. 20-21
  4. पुष्पादेवी, ’’मनाेरमा‘‘ 26 फरवरी, 1959, पृ. 23
  5. डाॅ. pगpरराज pकशाेर अग्रवाल, ’’कला pनबन्ध‘‘, पृ. 125
  6. डाॅ. स्वामी प्यारी आनन्द, ’’अवध की लाेक pचत्रकला‘‘ (अप्रकाpशत शाेध ग्रन्थ), पृ.68
  7. pरयाल एलस©, ’’डी. pफलासफी ऑफ आट© pहस्ट्री‘‘, पृ. 290
  8. शास्त्री ’’राजराम‘‘ , लाेक साpहत्य, पृ. 27
  9. शमा© अग्रवाल, आर.ए. ’’रूपप्रद कला के मूलाधार‘‘, पृ. 22 

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