( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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‘हलाला’ के नायक ‘डमरू’ का पौरूषत्व के आधार पर पुरूष विमर्श करते हुए आलोचनात्मक अध्ययन

    1 Author(s):  DR. NISHA SATYAJEET

Vol -  9, Issue- 12 ,         Page(s) : 108 - 113  (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

साहित्य में लम्बे समय से केवल स्त्री विमर्श पर चर्चा होते रहने के कारण रचनाकारों व आलोचकों ने उसे एकांगी बना दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज का एक पक्ष हाशिये पर चला गया। मुख्यधारा के भले ही थोड़े से लोग हैं लेकिन उनमें से भी जब कुछ हाशिये पर चले जाते है तो साहित्य का नैतिक दायित्व बनता है उनकी मूक आवाज को अभिव्यक्ति दे। उसी साहित्यिक एकांगीता को दूर करने की सुगबुगाहट हमें ‘हलाला’ उपन्यास में सुनाई पड़ती है। साहित्य के नये विमर्श पुुरूष विमर्श के दृष्टिकोण से हम डमरू का अध्ययन करते हैं। भगवानदास मोरवाल के उपन्यास ‘हलाला’ का मुख्य पात्र है- डमरू। उसके भाई तीन भाई है-जमाल खां, कमाल खां और नवाब खां। उसकी भाभियां हैं- नसीबन, फातिमा व आमना। वह सभी भाईयों में सबसे छोटा है। उपन्यास की मुख्य महिला पात्र हैं-नजराना। इसके माध्यम से ही रचनाकार ने उद्देश्य को अंजाम दिया है। उसकी सास कल्लो, उसका ससुर खुदा बख्श जिसे टटलू सेठ व हाजी के नाम से भी जाना जाता है। उसका पूर्व पति नियाज व अन्य पात्र हंै-रसखान, ईमाम, दादा टुंडला, फकीरा व लपरलेंडी।

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