International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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बौद्ध धर्म में गृहस्थों के लिए नियम (पुत्र-पुत्री के संदर्भ में)
1 Author(s): DR RANJANA RANI SINGHAL
Vol - 8, Issue- 3 , Page(s) : 221 - 232 (2017 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
बौद्ध धर्म की पुस्तक ‘धम्मपद’ में भग्वान् बुद्ध ने पवित्रता, त्याग तथा सदाचार के आधार पर अपने सिद्धान्तों का वर्णन किया। यहाँ मनुष्य के आचरण की ओर ध्यान रखकर पंचशील, कायिक, वाचिक तथा मानसिक धर्म के उपदेश देने के पश्चात् बुद्ध यह कहते हैं कि हर व्यक्ति को अपने धर्माचरण के साथ-साथ माता-पिता की आज्ञा का पालन करना चाहिए। इनका वर्णन ‘धम्मपद’ में मिलता है। गृहस्थ धर्म का अधिक वर्णन प्रसिद्ध ‘सिंगालोवाद सुत्त’ में दिया गया है। भगवान् बुद्ध एक समय राजगीर में बैठे हुए थे, तब वह देखते हैं कि एक उपासक सिंगाला भीगे बालों तथा कपड़ों में चारों दिशाओं में और ऊपर नीचे झुककर नमस्कार कर रहा है तब बुद्ध को पता चला कि वह 6 दिशाओं को बुराई रोकने के लिए नमस्कार कर रहा है। इस पर बुद्ध ने कहा कि दिशाओं की जगह अपने आस-पास के लोगों तथा माता-पिता के प्रति अच्छा बर्ताव करना चाहिए। बुद्ध ने कहा कि माता-पिता के लिए पूर्व दिशा, पश्चिम को पत्नी, बच्चों और उत्तर को दोस्तों व सखियों से दक्षिण को गुरु से, ऊपर को धार्मिक पुरुषों तथा नीचे को सेवकों के प्रति मानने को कहा। इस प्रकार के कर्तव्यों का वर्णन ‘सिंगालोवाद सुत्त’ में मिलता है। आधुनिक समय में बौद्ध धर्म का प्रसार प्रचार तीव्र गति से बढ़ रहा है। डाॅ. भीमराव अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म में दीक्षा ग्रहण की। यह दीक्षा अम्बेडकर जी ने नागपुर में ग्रहण की। इनके साथ-साथ 10 लाख अनुयायियों ने भी बौद्ध धर्म ग्रहण किया।