( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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भारतीय समाज में संगीत का प्रभाव

    1 Author(s):  DR. (MRS) VANDANA AGARWAL

Vol -  10, Issue- 1 ,         Page(s) : 292 - 296  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

समाज तथा व्यक्ति का आपस में घनिष्ठ संबंध है तथा संगीत प्रियता मानव की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। कहा भी गया है कि ‘रोना और गाना’ सभी को आता है। समाज का सीधा संबंध मनुष्य से संयुक्त होने के कारण कहा जाता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। जिस कारण हम इसे सामाजिक विज्ञान, सोशल साइंस या बायोनेचुरल साइंस भी कह सकते हैं। समाज के सृजन से भी पूर्व प्रारंभकाल से ही मानव ने अपने भावों को प्रकट करने के लिए ध्वनि का सहारा लिया। आदि मानव भी यदा-कदा उल्लास में उछलता-कूदता था, मुँह से विचित्र प्रकार की ध्वनि निकालता था तथा पत्थरों अथवा औजारों को एक-दूसरे से बजाता था। समाज में प्रचलित संगीत का यही आदिम रूप आज भी संसार की असभ्य जातियों में देखा जाता है। संगीत तो मानव के जन्म के साथ ही उसका सहचर तथा अभिन्न अंग रहा है। इसका प्रमाण प्राचीन साहित्य, कला-कृतियों आदि से स्पष्ट मिलता है। संगीत का समाज में व्यक्ति के साथ स्वतः ही प्रवेश हो जाता है। इस प्रकार व्यक्ति के साथ-साथ संगीत का भी समाज के साथ घनिष्ठ एवं अटूट संबंध है। समाज में प्रचलित किसी भी वर्ण तथा आश्रम के व्यक्तियों द्वारा संगीत को पूर्ण रूप से प्रत्येक काल में स्वीकार किया गया है। “संगीत का गौरव बढ़ाने के लिए ही उसकी दैवी उत्पत्ति” की कल्पना की गई है और उसे देवताओं से संबंधित बतलाया गया है।

1. भारतीय संगीत-एक वैज्ञानिक विश्लेषण-स्वतन्त्र शर्मा
 2. भारतीय संस्कृति-डाॅ. लल्लन जी गोपाल
 3. संगीत विशारद-लक्ष्मीनारायण गर्ग
 4. संगीत के जीवन पृष्ठ-सुरेशव्रत राय
 5. संगीत पत्रिका
 6. प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता-डाॅ. सत्यप्रकाश शर्मा

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