International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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षिक्षा का उद्देष्य-सर्वांगीर्ण विकास: षारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक (धर्मार्थकाममोक्षाणां आरोग्य मूलमं)
1 Author(s): SHRI OM PRAKASH SINGH BHADAURIYA
Vol - 10, Issue- 5 , Page(s) : 83 - 102 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
ार्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों परुशार्थों की प्राप्ति का मूल साधन आरोग्य है अर्थात् मानव के सर्वांगीण (षरीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक) विकास ही समाज में कुषल क्षेम ला सकते हैं। मन के सामंजस्य को नैतिकता कहा जाता है। नैतिकता बिहीन व्यक्ति पषु से भी अधम है। नैतिक सिद्धांतों के यम-नियम का आचरण समाज की षक्तिषाली एवं आदर्ष रचना में मील के पत्थर की भाँति साबित होगा। मानव के मन-वचन-कर्म की समानता उसके आचरण का परिचायक है।