International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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सांप्रदायिकता
1 Author(s): SUDHIR MALIK
Vol - 3, Issue- 1 , Page(s) : 250 - 257 (2012 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
भारतीय संविधान में भारतीय गणराज्य को पंथनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है। जिसका अर्थ है कि ऐसा राज्य जो सभी धर्मों का आदर करता हो या उनके प्रति तटस्थता और निष्पक्षता का भाव रखता हो। धर्म मा-पथ निरपेक्ष शब्द अंग्रेजी भाषा के सेक्यूलर शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। सेक्यूलर शब्द लैटिन भाषा के सरकुलम शब्द से बना है जिसका अभिप्राय होता है संसार अथवा इस प्रकार धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ ऐसे राज्य से है जिसका कोई धर्म नहीं होता और वह न ही किसी के साथ धार्मिक रूप से धर्म आधार पर कोई भेदभाव रखता है। इससे स्पष्ट होता है कि राज्य धार्मिक कार्यो मंे पूर्णता तटस्थ रहता है। क्योंकि वह धर्म को केवल एक व्यक्तिगत वस्तु मानता है। भारत में पंथ निरपेक्षता या धर्म निरपेक्षता का सिद्धान्त होते हुए भी सांप्रदायिकता के तत्व उपस्थित है। संप्रदाय शब्द शिक्षा सम्बन्धी परिचर्चाओं में अपमानजनक शब्दों के रूप में प्रयोग किया जाता है जो कि संकीर्ण साम्प्रदायिक हितों को दर्शाता है। साम्प्रदायिकता के अन्तर्गत वे सभी भावनाएं या कोई आते हैं जिनसे किसी धार्मिक या भाषा के आधार पर किसी विशेष समूह के हितों पर बल दिया जाता है और वे हित राष्ट्रीय हितों से पहले स्थान लेते हैं तो उनसे दूसरे धर्मों व राष्ट्र हितों की अपूर्णणीय क्षति हो सकती है। तो ऐसा होना ही साम्प्रदायिकता का घोतक है जिससे सामाजिक धार्मिक समूह अन्य समूहों के मूल्यों पर अपने आर्थिक, सामाजिक राजनैतिक हितों में अधिकतम संवृद्धि चाहता है। धर्म के नियमों को मानना या धर्म के प्रति वचनबद्ध रहना सांप्रदायिकता नहीं है परन्तु किसी धर्म विशेष को अन्य सर्वश्रेष्ठ दिखाना साप्रदायिकता है।