( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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सुस्थिर विकास एवं आयाम

    1 Author(s):  DR. VICHARI LAL MEENA

Vol -  10, Issue- 6 ,         Page(s) : 150 - 154  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

जिस विकास को आधर बनाकर पर्यावरण के साथ घोर अन्याय एवं अत्याचार किया जा रहा है। जिससे विभिन्न पर्यावरणीय व्याध्यिाँ उत्पन्न हो रही हैं। प्रकृति मानव के इन क्रिया कलापों को लम्बे समय तक बर्दाशत नहीं कर सकती है, क्योंकि उसकी भी एक सहन सीमा होती है। प्रकृति की सहनशीलता का बाँध जब टूटता है तो वह अपने उफपर अत्याचार करने वाले को दण्डित करने लगती है। मानव अपनी इच्छाओं, निजस्वार्थों एवं आर्थिक सम्पन्नता के लिए अत्यध्कि उत्पादन एवं जरूरत से ज्यादा प्राकृतिक संसाध्नों का दोहन प्रारम्भ कर देता है। जिससे की स्वच्छ एवं संतुलित पर्यावरण दूषित हो जाता है।

श्रीवास्तव डाॅ. पंकज- पर्यावरण शिक्षा, आर. लाल. बुक डिपो, मेरठ
भटनागर ए.वी, अनुराग, नीरु, पर्यावरण शिक्षा, आर. लाल. बुक डिपो, मेरठ
ओझा शिवकुमार, पारिस्थितिकी एवं पर्यावरण, बौ(िक प्रकाशन देवनगर इलाहाबाद
पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी, दृष्टि पब्लिकेशन्स, मुखर्जी नगर दिल्ली।

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