International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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कबीर का समाजवाद
1 Author(s): DR. RISHI RAJ
Vol - 10, Issue- 5 , Page(s) : 293 - 297 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
मानव एक सामाजिक प्राणी है समाज के बिना वह अधिक समय तक एकाकीं जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है। मानव जिस समाज में निवास करता है उसका निर्माण उसके स्वयं के द्वारा बनाये गये रीतिरिवाजों,धार्मिकपरम्परओं,सामाजिकमान्यताओं आदि के समायोजन से होता है। हम देखते हैं कि समय-समय पर देशकाल परिस्थिति के अनुरूप मानव द्वारा निर्मित इन रीतिरिवाजों,धार्मिकपरम्परओं और सामाजिकमान्यताओं में बाह्याड़म्बरों का एवं कुप्रथाओं का प्रवेश हो जाता है। जिसका प्रभाव समाज में अन्धविश्वास,व्यभिचार,हिंसा,द्वेष,ईष्या,पाखण्ड,असहिष्णुता,साम्प्रदायिकता के रुप में सम्पूर्ण प्राणीजगत पर पडता है। और इससे वह प्राणीजगत रुपी समाज धीरे-धीरे पतन की ओर उन्मुख होता जाता है। समाज के इस पतन को रोकने के उद्देश्य से समय-समय पर हमारी इस भारतभूमि पर अनेक सन्त एवं महापुरुष अवतरित हुए। जिन्होंने तात्कालिक समय पर समाज में व्याप्त इन आड़म्बरों एवं कुप्रथाओं का अपने आत्मज्ञान एवं गुरुप्रदत्त ज्ञान से घोर विरोध किया। और समाज को जागरुक करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। ऐसे ही एक सामाजिक सन्त एवं महापुरुष थे - कबीरदास जी । जिनका सामाजिक दर्शन आज भी सामाजिक कुप्रथाओं एवं बाह्याड़म्बरों पर कुठाराघात करता है। तथा मानव समाज को प्रेम,सत्य,अहिंसा,परोपकार का पाठ पढ़ाता है।
1. https//www.hi.m.wikipedia.org2. “भारत-दर्शन”, हिन्दी साहित्यिक ई पत्रिका3. भारतकोश4. “कबीर”, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी5. “कबीर की साधना”, प्रो. महवीर सरन जैन6. “कबीर ग्रन्थावली” https//www.hindisamay.com