( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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नचिकेता के गीत : राहें और भी हैं

    1 Author(s):  ANJANI KUMAR SHRIVASTAVA

Vol -  10, Issue- 4 ,         Page(s) : 436 - 445  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

अगर रीतिकाल को छोड़ दिया जाए तो बाकी सभी कालखण्डों में गीतों की रचना बड़े पैमाने पर हुई। लेकिन, गीतों की परम्परा में एक नया मोड़ आता है नवगीत आन्दोलन से। हालांकि, नवगीत को साहित्यान्दोलन माननेवाले थोड़े से रचनाकार किस्म के लोग हैं और रचना के धरातल पर इन्होंने कुछ नया किया हो यह भी मानने का कोई कारण नहीं दिखता, बावजूद इसके अगर इसे नया मोड़ कहा जाता है तो इसका केवल एक कारण है वह है कविता को गीत से भिन्न मानने की कोशिश। यह कोशिश रचनाकारों द्वारा की गयी टिप्पणियों से शुरू हुई—स्वयं अपनी रचनाओं पर अथवा आत्मकथ्य के रूप में। इन्हीं आत्मकथ्यों या टिप्पणियों को आप चाहें तो नया मोड़ कह सकते हैं; रचना में कोई नई चीज है यह कहना मुश्किल है। आलोचना की महत् परम्परा इसे कोई महत्त्व नहीं देती शायद इसी कारण । लेकिन, नवगीतकार अपने को महत्त्वपूर्ण मानते रहे हैं और आलोचना का रोना रोते रहे हैं। बहरहाल, मेरे लिए इनका महत्त्व एक और कारण से है और वह है गद्यकाल में कविता और गीत की स्थापना। गद्य की बढ़ती प्रवृत्ति जिसमें कविता के लय को भंग करने की प्रवृत्ति ने जोड़ पकड़ा और तर्क दिया जाने लगा कि इससे कविता सोचने पर बाध्य करती है, पाठक इससे भावप्रवणता में बह नहीं जाता। इस प्रवृत्ति के खिलाफ नवगीतकार उतरे। भले एक लघु परम्परा ही रही, लेकिन यही प्रतिरोध इन्हें महत्त्वपूर्ण बनाता है। बौद्धिकता केवल गद्य मात्र में नहीं होती, लययुक्त होने पर भी—यहाँ तक कि गीतों से भी सोचने पर विवश किया जा सकता है। यह केन्द्रीय तत्त्व है नवगीत का। हालांकि नचिकेता इस नवगीत की अगली कड़ी(जनवादी गीत) के गीतकार हैं, पर यही तत्त्व उन्हें महत्त्वपूर्ण बनाता है।

  नचिकेता, सोये पलाश दहकेंगे, आर्यभाषा संस्थान, वाराणसी, 1988,पृ.सं. 8
  नचिकेता,लिक्खेंगे इतिहास, प्रस्ताव प्रकाशन, पटना, 1982, पृ.सं. 29
  वही, पृ.सं. 13
  वही, पृ.सं. 52
  सोये पलाश दहकेंगे, पृ.सं. 37
  वही, पृ.सं. 45
  वही, पृ.सं. 65
  लिक्खेंगे इतिहास,भूमिका, पृ.सं. 6
 वही
  सोये पलाश दहकेंगे, पृ.सं.71
  लिक्खेंगे इतिहास, पृ.सं. 74
  Kavitakosh.org/kk/सपनों का नीड़/नचिकेता
  केदारनाथ सिंह, प्रतिनिधि कविताएँ (सं-परमानंद श्रीवास्तव), राजकमल पेपरबैक्स, नई दिल्ली, 2007, पृ.सं. 40
  सोये पलाश दहकेंगे,’गीत रचना की नयी जमीन’(भूमिका), पृ.सं. 9
  Kavitakosh.org/kk/रंग से परे/नचिकेता
    Kavitakosh.org/kk/सतपुड़ा के जंगल/भवानी प्रसाद मिश्र
    Kavitakosh.org/kk/नजर मौसम की/नचिकेता

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