( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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खाद्यान्न शस्यनक्रम एवं उत्पादकता विषलेषण जनपद फिरोजाबाद के संदर्भ में

    1 Author(s):  DR SUNIL KUMAR

Vol -  10, Issue- 7 ,         Page(s) : 52 - 68  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

शस्य व्यवस्था क्षेत्र विशेष प्राकृतिक दशाओं, सामाजिक, आर्थिक एवं संस्थागत तत्वों से निर्धारित होती है। किसी भी क्षेत्र में उगाये जाने वाले शस्य प्रतिरूप उस क्षेत्र की भूमि, भौतिक दषाओं यथा जलवायु, मृदा, आर्द्रता, धरातल तथा सांस्कृतिक स्थिति तथा श्रम-पूंजी, प्रबन्ध तथा तकनीकी विकास का प्रतिफल होती है। वृहद् रूप में यह स्वीकार किया जाता है कि शस्य व्यवस्था पर जलवायु, मृदा, भू-उपयोग व्यवस्था आदि का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। शस्य प्रतिरूप को स्पष्ट करने के लिए यह स्वीकार करना आवष्यक है कि किसी भी क्षेत्र के कृषकों के द्वारा अपनी भूमि के विभिन्न वर्गों को विभिन्न सुविधाओं तथा अपनी सामाजिक आवष्यकताओं की पूर्ति हेतु आवंटित किया जाता है, फिर भी शस्य प्रतिरूप को निर्धारित करने में पर्यावरण के आधारभूत तीन उपव्यवस्थाओं को देखा जाता है। यथा प्राकृतिक वातावरण, सांस्कृतिक एवं आर्थिकी इन तीनों ही वातावरण व्यवस्थाओं के द्वारा शस्य व्यवस्था के अवसरों को सकारात्मक एवं नकारात्मक रूप से प्रभावित किया जाता है ये तीनों ही वातावरण उपव्यवस्थाएं विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तनषील होती है तथा उसी परिवर्तन के अनुरूप शस्य व्यवस्था भी परिवर्तित होती है। अध्ययन क्षेत्र की शस्य व्यवस्था के विष्लेषण के लिए विकास खण्डवार उपलब्ध सूचनाओं को आधार मानते हुए इनका अध्ययन निम्न विधियों से किया गया है तथा प्रारम्भिक रूप से यह स्वीकार किया जा सकता है कि फिरोजाबाद जनपद में निर्वाहिक धान्य प्रधान व्यवस्था मिलती है, जिसमें धीरे-धीरे तकनीकी विकास तथा विभिन्न शस्यों की लाभप्रदता की दृष्टि से परिवर्तन भी दृष्टिगोचर होते है।

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5 तिवारी आर.सी. तथा बी.एन. सिंह, (2004) कृषि भूगोल प्रयाग पुस्तक भवन इलाहाबाद पृ0 134.
6 तिवारी आर.सी. तथा बी.एन. सिंह, (2004) कृषि भूगोल प्रयाग पुस्तक भवन इलाहाबाद पृ0 112.
7. Brigge, D.J. & Courtney, F.M. (1985) Agriculture and Environment: The Physical geography of Temperate Agriculture system, Longman Scientific and Technical Publication Singapore, P.442.

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