( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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गुप्त कालीन सामाजिक व्यवस्था में शुद्रों की स्थितिः-एक विष्लेषण

    1 Author(s):  LAL MOHAN RAM

Vol -  10, Issue- 6 ,         Page(s) : 282 - 284  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

गुप्तकालीन समाज में वर्ण व्यवस्था पूर्ण रूपेन प्रतिष्ठत थी। भारतीय समाज चार वर्णों - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैष्य, शुद्र के अतिरिक्त अन्य अन्य जातियाँ भी अस्तित्व में आ चुकी थी। समाज में ब्राह्मणों का स्थान सर्वोपरि था। क्षत्रिय राष्ट्र एवं शाषण के कार्यों से बंधा था। वैष्य मूलतः व्यवसाय वाणिज्य से जुड़ा था। समाज के सबसे नीचे पायदान पर शुद्रों की स्थिति सबसे दयनीय थी। इनका मुख्य कर्Ÿाव्य तीनो वर्णो की सेवा करना था। इन चारों वर्गों का आधार गुण और कर्म न होकर जन्म हीं था। तात्कालीन साहित्यं, स्मृतिकार जैसे- बाराहमिहिर के वृहतसंहिता, कौटिल्य का अर्थषास्त्र, मनु की मनुस्मृति एवं वृहस्पति, नारद, कात्यायन, याज्ञवलकय सभी ने शूद्रों को सामाज के सबसे निम्न श्रेणी में रखा है। बाराहमिहीर ने सभी वर्गों (चारों) के लिए विभिन्न बस्तियों की व्यवस्था की है । उनके अनुसार ब्राह्मणों के घर में पाँच, क्षत्रियों के घर में चार, वैष्यों के घर में तीन एवं शुद्रों के घर में दो कमरे का प्रावधान किया है।

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