( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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आप स्तम्ब गृह्य सूत्रा में विवाह और नारी

    1 Author(s):  SUDESH SINGH

Vol -  10, Issue- 7 ,         Page(s) : 184 - 190  (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

सभी संस्कारों में सर्वाध्कि महत्त्वपूर्ण और सार्वभौम संस्कार विवाह है। चूँकि गृहस्थाश्रम विवाहित जीवन का ही दूसरा नाम है इस कारण गृह्य कर्मों का आरम्भ विवाह से ही होता है। यही कारण है कि अनेक गृह्यसूत्रा विवाह के वर्णन से ही आरम्भ होते हैं। सभी गृह्यकर्मों का उद्गम या केन्द्र विवाह संस्कार ही है। ‘गृह’ को पत्नी का ही पर्यायवाची माना गया है। गृह्यकर्मों और संस्कारों से ही मनुष्य का व्यावहारिक और वास्तविक जीवन संब था। इसलिए विवाह संस्कार का महत्त्व सर्वोपरि होना स्वाभाविक है।

द्वितीयमायुषो भागं कृतदारो गृहे वसेत्। इति 1/4 मनु.
   तथा मंगलानि।। 1.2.14 आपस्त. गृह्यसूत्रा।
   ‘‘आवृत्तश्चास्त्राीभ्यः प्रतीयेरन्’’ 1.2.15 आपस्त. गृह्यसूत्रा
   1.3.21 आपस्तम्बगृह्यसूत्रा
   ‘‘आरोहतीमुत्तराभिरभिमन्त्रायते।। 14.2 आपस्तम्ब.’’
   ‘‘पत्न्यवहन्ति’’ 12.7.3 आप.
   रजसः प्रादुर्भावात् ........अभिमन्त्रायते।। 13.8.3 आपस्त. ।
   चतुर्थिप्रभृत्या......उपदिशन्ति।। 1.9.3 आपस्त. ।
   ‘‘स्त्रिायानुपेतेन क्षारलवणावरान्नसंसृष्टस्य च होमं परिचक्षते’’ 3.8.3 आपस्त.।
   उभयत्रापि.......त्रित्वमेवार्थः।। 3.10.4 आपस्त. गृह्य.
   असम्भवेप्सुः ........ उपवपेत्।। 3.23.8 आप. गृह्य.

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