International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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सीनियर सैकण्डरी विद्यालयों के पुस्तकालयों की वस्तुस्थिति एवं उपयोग का अध्ययन
1 Author(s): DR. RACHNA RATHORE
Vol - 10, Issue- 4 , Page(s) : 506 - 511 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
सृष्टि के प्रारंभ से मानव ने कुछ जानने की सीखने की प्रवृत्ति को प्रकट किया है। वह प्रवृत्ति शिक्षा का पथ है। किसी भी देश की उन्नति एवं विकास उस देश के नागरिकों पर निर्भर है लेकिन उसे शिक्षित होना परमावश्यक है। शिक्षण हेतु व्यक्ति को पुस्तकों की सहायता लेनी होती है। जाॅन डी. वी. के अनुसार- ‘‘पुस्तकालय विद्यालय का हृदय है।’’ डाॅ. एस. आर. रंगनाथन के अनुसार- ‘‘पुस्तकों, पाठकों और पुस्तकालय कर्मचारी इन तीनों का त्रित्व ही पुस्तकालय है।’’ किसी व्यक्ति या प्राणी द्वारा मुख से उच्चारित शब्दों को व्याकरणबद्ध, मुद्रित करके एक संरक्षित आकार प्रदान किया जाता है उसे पुस्तक कहते है। वर्तमान में किसी शैक्षिक संस्थान की आधारभूत आवश्यकताओं में पुस्तकालय का महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है। विद्यालय में एक अच्छा, समृद्ध एवं गुणवत्ता युक्त पुस्तकों से सुसज्जित पुस्तकालय अति-आवश्यक है। पुस्तकालय का मौलिक आधार उत्तम पुस्तकों का संग्रह हो। पुस्तकों की दृष्टि से पाठकों हेतु उपयोगी हो सके। पुस्तकालय शैखिक उद्देश्यों, विद्यार्थियों, शिक्षकों, अन्य पाठकों के मानसिक, तार्किक, बौद्धिक, शारीरिक, सामाजिक इत्यादि का सार्वभौमिक विकास में महत्वपूर्ण स्थान अदा करता है।