International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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विशिष्टा द्वैतानुसार मोक्ष चिन्तन विमर्श
1 Author(s): DR. SHASHI BALA
Vol - 10, Issue- 3 , Page(s) : 233 - 237 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
आत्मा को जब अपने स्वरूप को आत्मबोध् हो जाता है, तब आत्मा की उस अवस्थिति को शघड्ढर ने मोक्ष कहा है। आगे उन्होंने ही कहा है कि अविद्या की निवृत्ति ही मोक्ष है। वही ब्रह्म की प्राप्ति है। मोक्ष और अविद्या की निवृत्ति एक ही है- अविद्यापगमयात्रात्वात् ब्रह्मप्राप्तिपफलस्य । अविद्या का नाश होते ही मोक्षरूपी पफल की उत्पत्ति होती है। पफल×्य मोक्षो{विद्यानिवृत्तिर्वा । अद्वैत वेदान्त में आत्मज्ञान ही आत्मलाभ है।