International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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गांधी और श्रम समस्या
1 Author(s): SHAMBHU JOSHI
Vol - 4, Issue- 3 , Page(s) : 1224 - 1231 (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
औद्योगिक क्रांति व पूँजीवाद ने विश्व समाज में कई तरह के परिवर्तनों को जन्म दिया। इस परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण आयाम श्रमिकों की स्थितियों से भी जुड़ा है। पूँजीवाद के प्रांरभिक दौर में श्रमिकों की स्थिति काफी दयनीय रही। अपनी स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने काफी संघर्ष भी किया। कार्ल माक्र्स ने अपने गहन अध्ययन से श्रम - पूँजी संबंधों का नवीन विश्लेषण प्रस्तुत किया। पूँजीवाद व उसके प्रभावों का विश्लेषण कर उसके विकल्प की तलाश करने वाले व्यक्तियों ने श्रम-पूँजी संबंधों को अपना अध्ययन विषय बनाया और विचार प्रकट किए। इसी संदर्भ में गांधीजी का जिक्र इसलिए महŸवपूर्ण हो जाता है कि श्रम-पूँजी संबंधों पर उनके विचार माक्र्स व अन्य विचारकांे से भिन्नता लिए हुए है। गांधी जी की यह भिन्नता उनके अहिंसा व सत्य के विचारों से उत्पन्न होती है। एक ऐसे समय में जब लोकतंत्र व अहिंसा को विश्व जनमत की स्वीकृति मिल चुकी है, यह जरुरी हो जाता है कि औद्योगिक संबंधों में श्रम-पूँजी संबंधों की व्याख्या गांधीजी किस प्रकार करते है? उनका दृष्टिकोण क्या है? श्रम संबंधी उनके विचारों को इस यह आलेख इसे जानने का प्रयास किया गया है।