International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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प्रमुख स्मृतियों में वर्णित न्यायपालिका: एक अवलोकन
1 Author(s): KRRISHNA KANT DUBEY
Vol - 10, Issue- 2 , Page(s) : 166 - 179 (2019 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
मनुष्य काम-क्रोध-मद-लोभ-मोह एवं मात्सर्य के षड् दुर्गुणों के साथ जन्म लेता है, तदुपरान्त शनै:-शनै: समाज का प्रभाव उस पर पड़ना स्वाभाविक ही है। गुण की अपेक्षा दोषों का बीजारोपण शीघ्र सम्भव है, साथ ही बुराईयों, दुर्गुणों एवं गलत दुवृत्तियों का विकास गुणात्मक रूप में होता है। मनु के विचारानुसार इस संसार में पूर्णतया शुचि मनुष्य दुर्लभ है। अत: इन बढ़ती हुई बुराइयों-पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष एवं संस्कार-जन्य दुर्गुणों का साम्राज्य स्थापित न हो जाये, सब कुछ गलत ही न हो जाये, सारी व्यवस्था छिन्न-भिन्न न हो जाये, मर्यादा की रेखा खण्डित न हो जाये, `सत्य' समाज में स्थानविहीन न हो जाये, धर्म का अधर्म के भय से दम न घुट जाये, इसके लिये प्राचीन भारतीय ऋषि एवं दार्शनिक सतर्क थे। परिणामस्वरूप स्मृति-काल में ऋषियों ने दण्ड एवं न्याय की व्यवस्था की।