( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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अपराध जगत की जिंदा तस्वीर: अल्मा कबूतरी

    1 Author(s):  DR. SUBASH HEMRAJ PAWAR

Vol -  7, Issue- 10 ,         Page(s) : 276 - 278  (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

सि़र्फ दस-पंद्रह वषर्¨ं में द़र्जनभर उपन्यास लिखना आसान नहीं है। वृंदावनलाल वर्मा क¢ बाद बुंदेलखंड़ का चप्पा-चप्पा जिसने छान मारा, कबूतरा, म¨घिया, कलंदर, सांसी, पारदी, औदिया जैसी अपराधी जातिय¨ं की जानकारी हासिल कर जिसने विराट उपन्यास¨ं की रचना की, उस मैत्रेयी पुष्पा का स्थान रेणु क¢ बाद हिंदी जगत में लिया जाने लगा। कबूतरा जाति की क¨ई खास बस्ती नहीं ह¨ती। उनक¢ मर्द या त¨ जेल में ह¨ते हैं या जंगल में। उस जाति में औरत या त¨ मद बेचती है या किसी का बिस्तर गर्म करती है। गर्भवती कदमबाई क¨ ल¨ग बस में चढ़ने नहीं देते। कारण ‘‘गाड़ी में बच्चा पैदा कर देगी। बच्चा साला र¨एगा नहीं, जेब झाड़ेगा।’’1 छ¨टे-छ¨टे बच्च¨ क¨ च¨री करने क¢ गुर सिखाये जाते हैं। भींत क¢ नीचे किये सूराख से उसे भीतर भे़जकर घर की कुंडी खुलवाते हैं। उनक¢ च©र्य कर्म की भाषा भी अलग ह¨ती है। मुर्रा भैंसे ख¨लकर नाला, साइकिल चुराना, राह चलती औरत¨ं क¢ गहने लूटना उनक¢ बाएँ हाथ का खेल है।

1. मैत्रेयी पुष्पा - अल्मा कबुतरी, पृ. 32
2. मैत्रेयी पुष्पा - अल्मा कबुतरी, पृ. 61
3. मैत्रेयी पुष्पा - अल्मा कबुतरी, पृ. 98
4. मैत्रेयी पुष्पा - अल्मा कबुतरी, पृ. 113
5. मैत्रेयी पुष्पा - अल्मा कबुतरी, पृ. 56
6. मैत्रेयी पुष्पा - अल्मा कबुतरी, पृ. 366

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