International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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वर्तमान सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में स्त्री-विमर्श
1 Author(s): DR. BHARTI M. SANAP
Vol - 6, Issue- 3 , Page(s) : 435 - 439 (2015 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
अनेक युगों से व्यक्ति स्वातंत्र्य की पुकार स्त्री के स्त्रीत्व के संवेदन पुकार बनी हुई है। जीवन की व्यापक पृष्ठभूमि पर पुरुष और स्त्री दो ऐसे जीवन हैं, जो अन्य जीवों की अपेक्षा सोच-विचार की श्रेणी में श्रेष्ठ गिनाये जाते हैं। तथा अन्य जीवों की अपेक्षा विशिष्ट हैं। इन के आपसी हित संबंधों में इनकी आपसी समस्यायें भी अनेक हैं। पुरुष स्त्री से अधिक बलशाली होने के कारण समाज का प्रतिनिधित्व करता नजर आता है। सामाजिक रूढ़ी-परंपराओं के बीच जीती हुयी स्त्री और अधिकार जताता हुआ परुष-वर्ग इस से स्त्री-पुरुष संबंधों में आपसी-दूरी निर्माण होता रहा है। यह आपसी दूरी सामाजिक असंतोष व परिवार-टूटने की समस्याओं में उलझी हुयी है।
1. औरत होने की सजा, अरविंद जैन, पृ. सं. 282. औरत होने की सजा, अरविंद जैन, पृ. सं. 293. कामायनी ‘लज्जा‘ सर्ग, जयशंकर प्रसाद, पृ. सं. 104