( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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जैन धर्म की उपयोगिता बदलते विश्व के परिदृश्य में (अहिंसा और प्रदूषण)

    1 Author(s):  ABHISHEK KUMAR SRIVASTAVA

Vol -  11, Issue- 6 ,         Page(s) : 81 - 84  (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

धर्म एक महान सत्य है, किन्तु इसे यदि दो-तीन हजार वर्ष पुरानी भाषा में और परिभाषा में प्रस्तुत किया जाय तो वह समझ से परे और दुर्बोध हो जाता है। इस वैज्ञानिक युग में साँस लेने वाला प्रबुद्ध आदमी विज्ञान की शब्दावली से परिचित है। आज पूरे विश्व में जैसी परिस्थिति बन रही है उसे देखकर यही लगता है कि अब हमे अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए जैन धर्म में अहिंसा एक मुख्य विचार है। कुछ लोग इसे सैद्धान्तिक दृष्टि से देखते हैं, पर वास्तव में अहिंसा एक समूचा दर्शन है। इसमें कोई शक नहीं कि महावीर ने जीवन के सर्वोच्च मूल्यों की चर्चा की है, इसलिए अहिंसा का विचार बहुत सूक्ष्म और कभी-2 समाज के लिए अव्यवहार्य सा प्रतीत होने लगता है। पर भूमिकाओं की सापेक्षता से विचार करने पर यह बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि अहिंसा जीवन व्यवहार के लिए कितना अनिवार्य है।

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