( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 80    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित सामाजिक व्यवस्था का बदलता स्वरूप

    1 Author(s):  SARIKA SINGH

Vol -  11, Issue- 6 ,         Page(s) : 97 - 100  (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

भारतीय इतिहास में आचार्य कौटिल्य का काल मौर्य काल का है। आचार्य कौटिल्य को ‘विष्णुगुप्त’ व ‘चाणक्य’ भी कहा गया है। आचार्य विष्णुगुप्त अर्थशास्त्र ग्रंथ के रचयिता है। आचार्य विष्णुगुप्त ने सुसंगठित राष्ट्र के निर्माण को अपने जीवन का मुख्य लक्ष्य बनाया था, इसके लिए उन्होंने समाज निर्माण के महत्वपूर्ण कार्य की ओर सबसे अधिक ध्यान दिया। भारत के सामाजिक इतिहास में वर्ण-व्यवस्था का महत्वपूर्ण स्थान है, जो सामाजिक विभाजन के रूप में वैदिक काल से आज तक उŸार से दक्षिण तक निरन्तर प्रवाहमान है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत भारतीय समाज का वर्णों में विभाजन किया गया था। इसका प्रधान आधार रंग-भेद ही था।

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details