International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
**Need Help in Content editing, Data Analysis.
Adv For Editing Content
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में झारखंड की भूमिका
1 Author(s): DR.SHREE NATH SINGH
Vol - 11, Issue- 6 , Page(s) : 211 - 214 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
1857 में हुआ प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन को क्रूरतापूर्वक कुचल दिए जाने के बाद कंपनी सरकार भी भंग हो गई। ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार के बाद ब्रिटेन की महारानी का शासन भारत में शुरू हुआ। 1857 के विद्रोह से भारतीयों में राष्ट्रीय भावना का बीजारोपण हुआ । विद्रोह की विफलता से भारतीयों में यह समझ आ गई की सिर्फ शक्ति के बल से अंग्रेज़ो से मुक्ति नहीं मिल सकती बल्कि सभी वर्गो का सहयोग,समर्थन भी आश्यक है । इस तरह 1857 ने स्वतंत्रता प्रिय जनता को एकता तथा संगठन का पाठ पढ़ाया। इस राष्ट्रीय भावना के कारण ही औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में मुंडा जनजाति का विद्रोह झारखंड में शुरू हुआ 1870 के आते-आते औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार की पकड़ पूरे भारत में हो गई परंतु स्वतंत्रता की भावना को वे दबा नहीं सके कांग्रेस के उभरने के बाद झारखंड में स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई ऊर्जा मिली । बंगाली क्रांतिकारी झारखण्ड क्षेत्र में भी क्रान्ति संबंधी गतिविधियाँ चलाने लगे । रांची , हजारीबाग , देवघर , धनबाद बंगाली क्रांतिकारियों का प्रमुख केंद्र बन गया । बंगाल के निकट होने की वजह से झारखण्ड क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानी भी उनसे प्रेरित होकर क्रांतिकारी कार्य करने लगे ।