International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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दलित आलोचना में कबीर
1 Author(s): DR. RAVEENDRA PRATAP SINGH
Vol - 11, Issue- 8 , Page(s) : 120 - 133 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
हिंदी की कबीर विषयक शुरूआती आलोचना के अध्ययन से पता चलता है कि कबीर पर सांप्रदायिक-राष्ट्रवादी दबाव, व्यक्तिगत एवं जातिगत पूर्वाग्रह हाबी रहे। जिसकी वजह से कबीर का हिंदूकरण, वैष्णवीकरण और ब्राह्मणीकरण हुआ। इसी प्रक्रिया में वे विधवा ब्राह्मणी की संतान बना दिए गए और उनको सनातनी वेद-उपनिषदादि परंपरा का ही व्यक्ति मानकर उनके विचारों को परखा-समझा गया। मुख्यतः किंवदंतियों एवं अप्रमाणिक पदों के सहारे ही उनको रामानंद का शिष्य घोषित किया गया। इस संदर्भ में शायद कबीर ही ऐसे अकेले महापुरुष हैं, जिनके अध्ययन में उनके विचारों-संदेशां से ज्यादा परिश्रम उनके गुरु को खोजने, उन्हें ब्राह्मण ग्रंथां से जोड़ने तथा विधवा ब्राह्मणी की संतान बताने की दिशा में किया गया।