International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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श्री अरबिन्द एवं आचार्य रजनीश के धर्म-दर्शन का समीक्षात्मक अध्ययन
2 Author(s): SHALINI RANI DAS,SACHIN KAUSHIK
Vol - 5, Issue- 4 , Page(s) : 485 - 488 (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
धर्म मानव जीवन के प्रारंभ से ही अनिवार्य अंग रहा है। यह जीवन के किसी एक पहलू में नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानव जीवन में ही शामिल है। धर्म जीवन है, जीवन साध्य है, साधन कदापि नहीं है। धर्म शांति के लिए है, शांति का प्रतीक है, न कि अशांति का। धर्म मानव को सामान्य से निम्न और सामान्य से परे की ओर जाने की प्रवृत्तियों को अभिव्यक्त करता है। धर्म चरित्र का विकास करता है और मानव के पतन का उपचार करता है। धर्म निश्चित रूप से मानव की बौद्धिक, संस्कृति, विज्ञान, नैतिकता, कला, साहित्य एवं दर्शन का विकास है, क्योंकि धर्म मनुष्य में वह मूल-प्रवृत्ति, विचार, क्रिया और अनुशासन है जिसका लक्ष्य सीधे दैवी-शक्ति है, जबकि अन्य सब उसकी ओर केवल परोक्ष रूप से जाते हैं और कठिनाई से उस तक पहुंचते हैं तथा कई जगह ठोकर खाते हैं और वस्तुएं अपूर्ण तथा बाह्य प्रतीतियों में फंस जाता है।