International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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न्यायिक सक्रियता - स्वरूप एवं वर्तमान भारतीय सन्दर्भ में उपादेयता
1 Author(s): DAYACHAND
Vol - 11, Issue- 9 , Page(s) : 202 - 219 (2020 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
जनतांत्रिक व्यवस्था में संवैधानिक मर्यादा की रक्षा करने तथा संवैधानिक विकास में न्यायपालिका की प्रमुख भूमिका होती है। पारंपरिक रूप से शासन के दो अन्य अंगों व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका की निष्क्रियता पर अंकुश रखते हुए सामान्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना न्यायपालिका का सामान्य दायित्व तो है ही, परंतु कई संदर्भों में न्यायपालिका राजनीतिक व्यवस्था की प्रवृत्तियों, रुझानों एवं दिशाओं की निर्णायक भी हो जाती है। पिछले दशकों में भारत की न्याय व्यवस्था के स्वरूप में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया हैं। इन दशकों में न्यायपालिका का आकार प्रक्रिया, व्यवहार, क्षेत्राधिकार और विशेष रूप से उसका लक्ष्य ही बदल गया है। वर्तमान में न्यायपालिका का लक्ष्य व्यक्तिगत न्याय के साथ सामाजिक न्याय की स्थापना करना है। न्यायपालिका केवल न्याय प्रदान करने का ही कार्य नहीं कर रही है वरन् वह एक प्रशासक, सुधारक, अनुसंधानकर्ता और नीति-निर्धारक की भूमिका अदा कर रही है।