( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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अर्थावबोध में उदात्तादि स्वरों की उपादेयता

    1 Author(s):  MANOJ ARYA

Vol -  5, Issue- 1 ,         Page(s) : 537 - 546  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

“अर्थगत्यर्थ: शब्दप्रयोग:, अर्थं प्रत्याययिष्यामीति शब्द: प्रयुज्यते” उमहाभाष्य के इस कथनानुसार भाषा में शब्द का प्रयोग अर्थावबोध के लिए होता है। इसलिए भाषा के सन्दर्भ में शब्द की महत्ता आर्थिक दृष्टिकोण से है तथा उदात्त, अनुदात्त एवं स्वरित आदि स्वर अर्थप्रत्यायन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं, अत: संस्कृत भाषा में स्वर की महत्ता के विषय में संदेहलेशमात्र का भी अवसर नही है।

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1. महाभाष्य 1.2.30
2. वहीं
3. महा॰ पस्पशा॰
4. वहीं
5. वहीं
6. वाक्यपदीय 2.318
7. नारदीय शिक्षा 1.6
8. स्वरानुक्रमणी 1.8
9. शबर, जै॰ मी॰ सू॰ भा॰ 9.2.31
10. भरत, ना॰ शा॰ 17.110
11. साहित्यदर्पण परि॰ 3
12. ट्ट॰ भा॰ भू॰ पृ॰ 374
13. अष्टा॰ 4.2.73
14. महा॰ 1.1.1
15. वहीं
16. ‘अनुदात्तं पदमेकवर्जम्’ अष्टा॰ 6.1.158
17. निरुक्त 4.25
18. अष्टा॰ 1.2.29-31
19. शिशुपालवध् 2.90
20. चितः, अष्टा॰ 6.1.157
21. ×िनत्यादिर्नित्यम्, अष्टा॰ 6.1.191
22. स्वरानुक्रमणी 1.8.7
23. स्वरा॰ 1.3.2, 3, 22
24. अष्टा 6.2.1
25. महा॰ 1.1.1 वृ(िसूत्रा
26. स्वरानुक्रमणी 1.1.22
27. अष्टा॰ 6.1.201-202
28. स्वरानुक्रमणी 18.1
29. स्वरानुक्रमणी 1.1.25

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