International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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साहित्य में ‘चेतना’ और ‘चेतना’ के विविध आयाम
1 Author(s): CHANDANI MAHAR
Vol - 7, Issue- 4 , Page(s) : 336 - 347 (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
जन्म के बाद से ही मनुष्य में धीरे-धीरे चेतना का विकास होता है। सामाजिक एवं पारिवारिक वातावरण से ही मानव में चेतना का धीरे-धीरे विस्तार होता है। चेतन मन की शक्ति के कारण ही मानव अन्य प्राणियों से भिन्न माना जाता है, जिसके कारण वह अपनी आस-पास की बातों को समझकर उनका मुल्यांकन करता है। समाज में प्रचलित परिस्थितियों में चेतना का स्वरूप भी भिन्न-भिन्न हो जाता है। मानव जीवन के विभिन्न क्षेत्र, जैसे सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आदि क्षेत्रों में चेतना विभिन्न रूपों में पाई जाती है।