( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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भारत में शासकीय विकेन्द्रीकरण: चुनौतियाँ एवं सुधार

    1 Author(s):  DR. RAJESH YADAV

Vol -  5, Issue- 3 ,         Page(s) : 155 - 173  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

’’हमारे संविधान की मंशा है कि पंचायती राज संस्थाओ के माध्यम से ऐसा समावेशी समाज बने जहाँँ सामाजिक न्याय व आर्थिक तरक्की हो। यह काम महज पंरपरागत सामाजिक व राजनीतिक नेतृत्व नहीं कर सकता। विकास के लिए अच्छे कायदे कानून बनाना और कल्याणकारी योजनाएँ बनाकर उन्हें क्रियान्वित करना पहला आवश्यक कदम है किन्तु केवल कानून और योजनाएँ बन जाने मात्र से ही बात पूरी नहीं होती। ग्राम सभा को ग्रामीण स्थानीय स्वायत्त शासन की आधारशिला माना जाता है, जो पंचायतो के कार्य संचालन पर गहरा असर डालती है। यदि ग्राम सभा शक्तिशाली और जीवन्त होती है तो पंचायते भी अत्यन्त कुशलता के साथ कार्य करती हैं। भारत गाॅवो का देश है इसलिये बिना गाँवों का विकास किये देश का विकास नहीं हो सकता और गाॅवों के विकास में स्थानीय स्वायत्त संस्थाएँ ही महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हंै। स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के गठन के पीछे उद्देश्य भी यही था कि देश की राजधानी से दूर दुरूह, बीहड़ और सूदूरवर्ती क्षेत्रों मेें रहने वाले लोगों तक विकास योजनाओं की पहुँच सुनिश्चित की जाए साथ ही, संवेदनशील, कर्मठ, और सामाजिक सरोकार के साथ समावेशी समाज का निर्माण हो।‘‘

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