( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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रघुवीर सहाय के काव्य के वैचारिक आयाम और राजनीति

    1 Author(s):  CHANDERKALA

Vol -  5, Issue- 4 ,         Page(s) : 100 - 109  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

रघुवीर सहाय हिन्दी जगत् में एक कवि के रूप में अध्कि जाने जाते हैं। ये साहित्य में उस पीढ़ी के सदस्य थे, जो स्वाध्ीनता आंदोलन की समाप्ति पर रचनाशील हुई थी। किसी लब्ध् प्रतिष्ठित लेखक की तरह रघुवीर सहाय ने अपने समाज और युग की विसंगतियों की अभिव्यक्ति के लिए एक विचारदृष्टि और युग मूल्यों की सर्जना की। स्वाध्ीनता प्राप्ति के बाद जो नयी काव्यधरा उभरकर सामने आई, उसमें रचनाकारों का एक बड़ा समुदाय लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उदासीन और गैर राजनीतिक हो गया। यह उस समय के शासक वर्ग की एक अपेक्षा भी थी कि एक नये मध्यवर्ग की उस आदर्श भावना और जनतांत्रिक मूल्यों से काट दिया जाए जो सामाजिक रूपांतरण को बढ़ावा देते हो। उस दौर के अनेक कवियों ने आत्म संस्कार था सामाजिक संस्कार से अपने को अलग रखकर ही अपनी आध्ुनिकता को सार्थक माना। रघुवीर सहाय एकमात्रा ऐसे कवि थे, जिन्होंने अपनी जनतांत्रिक संदवेदनशीलता को कायम रखा। रघुवीर सहाय के ‘दूसरा सप्तक’ वक्तव्य में कहा था कि फ्विचारवस्तु का कविता मे खून की तरह दौड़ते रहतना कविता को जीवन और शक्ति देता है, और यह तभी संभव है जब हमारी कविता की जड़े यथार्थ में हो-

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1. दूसरा सप्तक, वक्तव्य- रघुवीर सहाय पृ. 139
2. रघुवीर सहाय संचयिता पृ. स. 240
3. ‘दूसरा सप्तक’ की वक्तव्य
4. ‘आत्महत्या के विरू(’, अपने आपमें बेकार, पृ.19
5. ‘आत्महत्या के विरू(’, मेरा प्रतिनिध्,ि पृ. 27
6. हँसों-हँसों जल्दी हँसों, रामदास पृ.27
7. लिखने का कारण 158
8. वही पृ. 147
9. आत्महत्या के विरू(, अध्निायक पृ. 58
10. सुरेश शर्मा... रघुवीर सहाय कविकर्म पृ. स. 132
11. हँसों हँसों जल्दी हँसों- पृ. 25
12. लिखने का कारण पृ. 97
13. लिखने का कारण पृ. 101
14. ‘आत्म हत्या के विरू(’, मेरा प्रतिनिध्-ि पृ. 27
15. हँसों हँसों जल्दी हँसों पृ. 1
16. हँसों-हँसों जल्दी हँसों, चेहरा, पृ.66
17. ;सड़क पर रपट, हँसों-हँसों जल्दी हँसों, पृ. 31
18. आत्महत्या के विरू(, वक्तव्य पृ. 10
19. आत्महत्या के विरू( पृ. 29
20. आत्महत्या के विरू(, पृ. 25
21. ‘आत्म हत्या के विरू(’, एक अध्ेड़ भारतीय आत्मा पृ. 95
22. रघुवीर सहाय रचनावली भाग-3 पृ.404
23. आत्महत्या के विरू( काव्य संग्रह की भूमिका
 

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