( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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आधुनिक सन्दर्भ में प्रेमचन्द की कहानियों की प्रासंगिकता

    1 Author(s):  ANITA

Vol -  5, Issue- 9 ,         Page(s) : 128 - 134  (2014 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

षोध-पत्र सार प्रेमचन्द ने अपने कहानी साहित्य मंे तत्कालीन समाज का सजीव चित्रण किया है। उस समय समाज के दो वर्ग थे- षोशित और षोशक। धर्मावलम्बी अपने को श्रेश्ठ सिद्ध करने के लिए समाज में धर्मान्धताओं का जाल बुन रहे थे। निर्धन वर्ग जीविको पार्जन में सदैव आकण्ठ दारिद्रय में डूबा रहता था। परिश्रम की तुलना में उसकी प्राप्ति नगण्य थी। समाज में उस समय चारों तरफ ऊँच-नीच का भेदभाव वर्ण-व्यवस्था, अस्पृष्यता का ताण्डव नृत्य था। सामाजिक कुरीतियाँ, विधवा विवाह पर प्रतिबन्ध, बाल-विवाह आदि यौवन पर था। षासक वर्ग जनता को उत्पीडि़त करने में अपना सामथ्र्य अनुभव करता था। इन सब की प्रासंगिकता वर्तमान में निहित है अथवा नही, यह देखने के लिए प्रेमचन्द की कहानियों की और लोटना होगा। यद्यपि वर्तमान में यह परिस्थितियाँ परिवर्तित हो चुकी है तथापि प्राचीनकाल के तत्व आज के समज में किसी न किसी रूप में विद्यमान है।

1. डाॅ0 अषोक तिवारी, प्रतियोगिता साहित्य सीरिज, पृ0190
2. द्रश्टव्य राधा अग्रवाल, प्रेमचन्द के कथा साहित्य में धर्मनिरपेक्षता, पृ0249
3. प्रेमचन्द मानसरोवर भाग-1 पृ0 201
4. प्रेमचन्द मानसरोवर भाग-1 पृ0 201
5. स्वामी दयांनन्द, सत्यार्थ प्रकाष, चतुर्थ समुल्लास, पृ0 51
6. डा0 श्रीराम षर्मा एवं डाॅ श्री भगवान षर्मा, हिन्दी भाशा एवं साहित्य का इतिहास पृ0152
7. प्रेमचन्द, मानसरोवर, भाग-1, पृ0 147
8. प्रेमचन्द, मानसरोवर, भाग-4 पृ0 12-13
9. सम्मति मनव्रता देवी, नारी-धर्म-षिक्षा,पृ0 55
10. द्रश्टव्य, डाॅ0 इन्द्र कुमार मोहन सिन्हा, ”पे्रमचन्द युगीन 
भारतीय समाज“ पृ0 401
11. डाॅ0 राधाकृश्णन, धर्म और समाज, पृ0 45
 

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