‘पाँच आँगनों वाला घर’ में पारिवारिक विघटन
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Author(s):
DR. RATNA KUSHWAH
Vol - 5, Issue- 5 ,
Page(s) : 580 - 590
(2014 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
Abstract
‘पाँच आँगनों वाला घर’ गोविन्द मिश्र का पारिवारिक धरातल पर स्थित उपन्यास है। उपन्यास का कथानक पाँच आँगनों वाले संयुक्त परिवार से शुरू होकर एकल परिवार पर खत्म होता है। इस उपन्यास का काल-खण्ड 1940 से लेकर 1990 तक के व्यापक फलक का है जो निरन्तर पतनोन्मुख होता हुआ अराजकता और मूल्यहीनता की स्थिति पर पहुँचता है। करीब पचास वर्षों में फैली ‘पाँच आँगनों वाला घर’ के सरकने की कहानी दरअसल तीन पीढि़यों की कहानी है, जो इस उपन्यास में तीन भागों में विभाजित है। उपन्यासकार ने इस व्यापक फलक को तीन भागों में (क्षेत्र, दीवारें और अन्धी गली) बाँट कर पेश किया है। उपन्यास का मुख्य कथ्य निम्न से निम्नतर होती पारिवारिक व्यवस्था को दर्शाना है। पाँच आँगनों वाला घर जो कि संयुक्त परिवार की एक मिसाल था, काल के थपेड़ों से विघटित होता जाता है। यह उपन्यास तीन पीढि़यों के परस्पर अन्तर्विरोधों और बदलते मूल्यों की गाथा है जिसे उपन्यासकार ने पण्डित राधेलाल के परिवार के माध्यम से स्पष्ट किया है।
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