प्राचीन भारत में संस्कार
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Author(s):
DINESH KUMAR YADAV
Vol - 7, Issue- 4 ,
Page(s) : 37 - 40
(2016 )
DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
Abstract
भारतीय समाज की कुछ अपनी विशिष्ट परम्पराएं हैं जो विश्व के किसी भी दूसरे समाज में प्राप्त नहीं है। इसका कारण यह है कि हमारे जीवन के आदर्श अन्य देशों के आदर्शों से पूर्णतया भिन्न हैं। जहां हमने आध्यात्मिकता पर बल दिया है वहीं दूसरे देशों में भौतिकता को प्रधान माना गया है। हम ’स्व’ के लिए अपने जीवन में कोई महत्त्व नहीं रखते। संस्कार द्वारा ही हम इस महत्ता को स्वीकार करते हैें कि हमारा सम्पूर्ण जीवन ऋणों के बोझ से बोझिल है और उसे हल्का करने के लिए केवल एक ही माध्यम है यज्ञ।
- पाण्डेय, डाॅ0 राजबली, हिन्दू संस्कार, पृ0 19
- वही
- वही पृ0 18
- आश्वलायन गृ0सू0 1, 115
- जैन, डाॅ0 कैलाश चन्द्र, प्राचीन भारतीय सामाजिक एवं आर्थिक संस्थाएं, पृ0 47-48, (मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी)
- च्तपउपजपअम बनसजनतम च्ंतज प् च्ण् 365
- आश्वलायन गृ0 सू0 1, 4, 13
- पा0गृ0 सू0 1, 17, 11
- पा0 गृ0 सू0 1, 11, 18
- ऋग्वेद 10, 85
- वही, 10, 183,-84
- वही, 10, 14, 18
- अथर्ववेद 14, 12
- वही 18, 1-4
- वही 3, 23, 6, 18
- गोपथ ब्राह्मण 1, 2, 1, 8
- शतपथ ब्राह्मण 11, 3, 3, 1
- तैत्तिरीय उपनिषद 1, 11
- याज्ञवल्क्य स्मृति 1, 3
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