International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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मध्यकालीन हिन्दी भक्ति साहित्य का पाठ
1 Author(s): DR. TRIPTI SRIVASTAVA
Vol - 7, Issue- 4 , Page(s) : 141 - 148 (2016 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
कोई भी विचार या प्रत्यय शब्दों के माध्यम से ही अस्तित्व ग्रहण करता हैए जो कुछ भी अस्तित्व में है वह शब्द रूप में विद्यमान है ण् यहां तक कि अस्तित्व में ष्नष् होना भी शब्द और भाषा के माध्यम से ही घटित होता हैण् इसलिए ष्शब्दष् ही ष्ब्रम्हष् हैण् परन्तु शब्द रूपी संकेतक का अर्थ रूपी संकेतित से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होने अथवा नेति.नेति का सम्बन्ध होने के कारण अर्थ ग्रहण और अवबोध की प्रक्रिया जटिल हैण् इस प्रकार शब्द के अर्थ ग्रहण में सन्दर्भ महत्वपूर्ण है और सन्दर्भ के निर्धारण में अवबोध की दृष्टि ण् अवबोध का आधार ज्ञेयता हैण् अर्थात अवबोध उसी का होगा जो ज्ञेय है और जो ज्ञेय है वह शब्द रूप में अस्तित्वमान भी हैण् इस प्रकार ज्ञेयता और अवबोध की दृष्टि बदलने पर सन्दर्भ बदल जाता हैए व्याख्या बदल जाती है परंतु शब्द वही रहता हैण्