( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

Impact Factor* - 6.2311


**Need Help in Content editing, Data Analysis.

Research Gateway

Adv For Editing Content

   No of Download : 2859    Submit Your Rating     Cite This   Download        Certificate

दलित साहित्य: स्वरूप एवं महत्त्व

    1 Author(s):  DR. SONIA DHAIYA

Vol -  9, Issue- 2 ,         Page(s) : 214 - 220  (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

हिन्दी में मुख्यधारा का मिथक अब टूट चुका है, अब इसमें स्त्री विमर्श और दलित विमर्श जैसी मुख्य धाराएॅं हैं। दलित साहित्य ने इसमें पिछले वर्षों में अपनी इतनी प्रतिभाशाली उपस्थिति दर्ज कराई है कि अब तथाकथित मुख्यधारा भी दलित विमर्श के संदर्भ में परिभाषित होने लगी है, अब उसे गैर-दलित साहित्य कहा जाने लगा है।

1. डाॅ. हरदेव बाहरी: राजपाल हिंदी शब्दकोश, पृ. 386
2. डाॅ. नरेन्द्र सिंह: ‘दलितों के रुपांतरण की प्रक्रिया, पृ. 7
3. ओमप्रकाश वाल्मीकि: दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, पृ. 13
4. किशोर कुणाल: ‘दलित समाज आज की चुनौतियाॅं, भूमिका
5. डाॅ. सुनीता साखरे: ‘हिन्दी और मराठी दलित साहित्य’, पृ.16
6. रमणिका गुप्ता: ‘दलित साहित्य सृजन के संदर्भ’, पृ. 19
7. ओमप्रकाश वाल्मीकि: ‘दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र’, पृ.73
8. रघुवीर सिंह: ‘डाॅ. अम्बेडकर और दलित चेतना’, पृ. 7
9. संपा. पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी: ‘हिन्दी दलित साहित्य रचना और विचार’, पृ. 11
10. प्रज्ञा साहित्य: ‘दलित चेतना विशेषांक’, पृ. 34
11. डाॅ. मुन्ना तिवारी: ‘दलित चेतना और समकालीन हिन्दी उपन्यास, पृ. 36

*Contents are provided by Authors of articles. Please contact us if you having any query.






Bank Details