( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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भाषा के विविध रूप

    1 Author(s):  DR. SONIA DHAIYA

Vol -  9, Issue- 3 ,         Page(s) : 198 - 201  (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसे समाज के विविध परिवेशों में जीवन बीताना पड़ता है । उसे अपने जीवन-यापन, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति एवं अपने उद्देश्यों व लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समाज के अनेक लोगों से वाग् व्यवहार करना पड़ता है । क्योंकि भाषा ही मनुष्य की सम्पूर्ण विवक्षाओं को दूसरे मनुष्य के समक्ष सम्प्रेषित करने का सबसे सशक्त माध्यम है । भाषा साधन है जो उसके साध्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता हैं । मनुष्य को अपने प्रत्येक कार्य एवं विचार को पूर्णता देने के लिए दूसरे मनुष्य की आवश्यकता पड़ती हैं और दूसरे मनुष्य को अपने विचार समझाने के लिए भाषा की आवश्यकता पड़ती है । अतः भाषा सर्वोत्तम एवं सर्वोपरि साधन है जिसके अभाव में मानव-समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती । भाषा और समाज दोनों अन्योन्याश्रित हैं अर्थात् एक के अभाव में दूसरे की कल्पना भी नहीं की जा सकती ।

1. तिवारी, सियाराम: ‘काव्यभाषा’, दि मैकमिलन कम्पनी आॅफ इंडिया लिमिटेड, ।, लारेंस रोड़, रामपुरा, दिल्ली- 110035, 1976, पृ. सं.- 3
2. ‘शीतांशु पांडेय शाशिभूषण: ‘रचना-संदर्भ कथा-भाषा, प्रतिभा प्रकाशन, 11/22 टैगोर नगर, होशिचारपुर, 1989, पृ. सं. - 4
3. त्रिवारी, सियाराम: वही, पृ. सं. - 105

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