( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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आदिवासी साहित्यः स्वरूप और संभावनाए

    1 Author(s):  DR. SUBASH HEMRAJ PAWAR

Vol -  9, Issue- 2 ,         Page(s) : 340 - 343  (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

भारतीय समाज, राजनीतिक और साहित्य में उत्पीड़ित अस्मिताओं के मुक्तिकामी संघषर्¨ का द©र है। óीवादी साहित्य अ©र दलित साहित्य के बाद अब आदिवासी चेतना से लेंस साहित्य भी साहित्य अ©र अल¨चना की दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुँका है। हाँलाकि आदिवासी ल¨क में साहित्य सहित विविध कला माध्यम¨ं का विकास तथाकथित मुख्यधारा से पहले ह¨ चँुका था। लेकिन वहाँ साहित्य सृजन की परंपरा मूलतः म©लिक रही। आज आदिवासी समाज च©तरफा चँुन©तिय¨ं से घिरा है। आदिवासी अस्मिता अ©र अस्तित्व के लिए इतना गहरा संकट इससे पहले नहीं पैदा हुआ। जब सवाल अस्तित्व का ह¨ त¨ प्रतिविर¨ध भी स्वाभाविक है। सामाजिक अ©र राजनीतिक प्रतिर¨ध के अलावा कला अ©र साहित्य के द्वारा भी प्रतिकार की आवाजें उठी अ©र वही समकालीन आदिवासी जीवन में अनावश्यक हस्तक्षेप किया त¨ आदिवासी ने उनका प्रतिर¨ध किया। पिछली द¨ सदिय¨ं से आदिवासी विष्¨ष की गवाह रही है। इन विष्¨ष से रचनात्मक उर्जा निकली, लेकिन वह म©खिक ही अधिक रहा। संचार माध्यम के अभाव में वह राष्ट्रीय रूप धारण कर न सकी।

1 आदिवासी विमर्श - स्वस्थ जनतांत्रिक मूल्य¨ं की तलाश, सं. डॉ. विरेंष्सिंह यादव, डॉ. रविंष्कुमार साहु
2 पाँव तले की दूब - वाग्देवी पाकेट बँक्स, संकलन, 2005, पृ.88
3 आदिवासी अस्तित्व अ©र झारखंडी अस्मिता के सवाल, डॉ. रामदयाल मँुडा, सं.2002, पृ. 29
4 झारखंड. जादूई जमीन का अंधेरा, उर्मिलेश, प्रकाशन संस्था 1999, पृ. 29
5 अदिवासी अस्मिता का संकट, रमणीक गुप्ता, सामायिक प्रकाशन
आदिवासी साहित्य विमर्श. सं. अरूण अ¨झा     

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