( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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रामदरश मिश्र के उपन्यासाे में नारी-नवजागरण

    1 Author(s):  DR. PRAVEEN YADAV

Vol -  4, Issue- 3 ,         Page(s) : 201 - 207  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

भारत स्वतंत्रता-पूर्व दासता, रूढि़याें एवं अंधिविष्वासों की बेडि़यों में जकड़ा हुआ था। स्वतंत्रता-प्रापित के पश्चात भी इन परिसिथतियाें में कोर्इ विषेष अंतर नहीं आया, पुरूष-प्रधान समाज में नारी की सिथति दयनीय एवं शोचनीय बनी हुर्इ थी। भारतीय मनीषियाें का यह उदघोष-'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता

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1. महाभारत, अनुषासन पर्व, 46/14
2. थकी हुई सुबह, रामदरष मिश्र, पृष्ठ 104
3. वही. पृ.71
4. बीस बरस, रामदरष मिश्र, पृ.39
5. वही, पृ.99
6. दूसरा घर, रामदरष मिश्र, पृ.190
7. आकाष की छत, रामदरष मिश्र, पृ.62
8. बिना दरवाजे का मकान, रामदरष मिश्र, पृ.10
9. वही, पृ.20
10. पानी के प्राचीर, रामदरष मिश्र, पृ.36
11. वही, पृ.78
12. जल टूटता हुआ, रामदरष मिश्र, पृ.21
13. वही, पृ.190
14. रात का सफर, रामदरष मिश्र, पृ.49
15. वही, पृ.95
16. वही, पृ.95

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