International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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कालशक्ति तथा अन्य शक्तियों की यथार्थता और मिथ्यात्व के विषय में विभिन्न विद्वानों के मतों का तुलनात्मक अध्ययन–
1 Author(s): MEERA SHARMA
Vol - 4, Issue- 3 , Page(s) : 421 - 436 (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
भर्तृहरि–दर्शन में शब्द–ब्रह्म की शक्तियाँ शब्दब्रह्म से अभिन्न मानी जाती हैं। भर्तृहरि ‘शक्तिशक्तिमतोऽभेदः’ इस न्याय से शक्तिमान् और शक्ति में अभेद मानते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि शब्दब्रह्म से अभिन्न मानी जाने वाली ये शक्तियां क्या हैं? हेलाराज दिक् समुद्देश की पहली कारिका में काल, दिक्, साधन, क्रिया आदि का शक्तियों के रूप में वर्णन करके, शक्ति का लक्षण देते हुए कहते हैं कि परतन्त्रता अर्थात् परतन्त्र होना शक्ति का लक्षण है। इसका अभिप्राय है कि भर्तृहरि शक्ति की परतन्त्रता स्वीकार करते हैं अर्थात् शक्तियाँ शक्तिमान् के अधीन होती हैं। भर्तृहरि ने शब्दब्रह्म को ‘सर्वबीज’ और ‘सर्वशक्तिमान्’ इन शक्तियों के कारण ही कहा है क्योंकि सभी पदार्थ इस संसार में अपने व्यक्त होने से पहले शब्दब्रह्म में बीज, शक्ति या योग्यता के रूप में अवस्थित रहते हैं। वृषभदेव ने पद्धति में ‘बीज’ के लिए ‘शक्ति’ शब्द का प्रयोग और ‘शक्ति’ के लिए ‘योग्यता’ शब्द का प्रयोग किया है।