( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH

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गढ़वाली लोकगीत : एक परिचय

    1 Author(s):  DR. JYOTSNA RAWAT

Vol -  4, Issue- 3 ,         Page(s) : 524 - 534  (2013 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH

Abstract

गढ़वाल के लोक-साहित्य की धरती पर कहीं नृत्य, कहीं संगीत, कहीं वाध, कहीं गीत, कहीं गाथाएँ, कहीं कथाएँ तो कहीं नाटय रंग-बिरंगे रूपों में झूमते से नज़र आते हैं। रंगीला गढ़वाल अपनी संस्कृति के रंगों से जाना जाता है। अपने भीतर लोक-साहित्य की सभी विधाओं को समेटे गढ़वाल अपनी जीवंतता का परिचय देता है। सरल शब्दों में लोक-साहित्य वह मौखिक अभिव्यकित है जिसे युगों-युगों से इस संसार में अज्ञात रचयिताओं के द्वारा गढ़ा जाता रहा है और युगों-युगों से हम सभी के द्वारा इसे अपनाया जाता रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि इसमें लोक-मानस अनिवार्य रूप से विधमान रहता है। लोक-साहित्य की विधाओं के अंतर्गत लोक-गीत, लोक-गाथा, लोक-कथा, लोक-नाटय और प्रकीर्ण साहित्य आते हैं।

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1. हिन्दी भक्ति-साहित्य में लोक-तत्व, डाॅ. रवीन्द्र भ्रमर, पृ. 5
2. लोक साहित्य विज्ञान, डाॅ. सत्येन्द्र, पृ. 326
3. राजस्थान के लोकगीत, प्रस्तावना, सूर्यकिरण पारीक व नरोत्तम स्वामी, पृ. 1-2 (पूर्वार्द्ध)
4. लोक साहित्य के प्रतिमान, डाॅ. कुन्दनलाल उप्रेती, पृ. 46-47
5. सम्मेलन पत्रिका (लोक संस्कृति विशेषांक), डाॅ. सदाशिव कृष्ण फड़के, पृ. 250
6. कविता कौमुदी, भाग-5, प्रस्तावना, श्री रामनरेश त्रिपाठी, पृ. 1-2
7. लोक संस्कृति की रूपरेखा, डाॅ. कृष्णदेव उपाध्याय, पृ. 266
8. गढ़वाली भाषा और उसका साहित्य, डाॅ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’, पृ. 132-133
9. गढ़वाली लोकगीत विविधा, डाॅ. गोविन्द चातक, पृ. 64
10. वही, पृ. 66
11. गढ़वाली भाषा और उसका साहित्य, डाॅ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’, पृ. 141
12. वही, पृ. 138
13. गढ़वाली लोक-साहित्य का विवेचनात्मक अध्ययन, मोहनलाल बाबुलकर, पृ. 56
14. गढ़वाली लोकगीत, गोविन्द चातक, पृ. 20
15. गढ़वाली लोक-साहित्य का विवेचनात्मक अध्ययन, मोहनलाल बाबुलकर, पृ. 51
16. गढ़वाली भाषा और उसका साहित्य, डाॅ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’ पृ. 143
17. गढ़वाली लोकगीत, गोविन्द चातक, पृ. 248
18. वही, पृ. 209
19. गढ़वाली लोक-साहित्य का विवेचनात्मक अध्ययन, मोहनलाल बाबुलकर, पृ. 79
20. गढ़वाली भाषा और उसका साहित्य, डाॅ. हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’, पृ. 155
21. वही, पृ. 160

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