International Research journal of Management Sociology & Humanities
( ISSN 2277 - 9809 (online) ISSN 2348 - 9359 (Print) ) New DOI : 10.32804/IRJMSH
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विद्यापति के काव्य में सौन्दर्य सन्दर्भ
1 Author(s): BISHNUDEO PASWAN
Vol - 9, Issue- 4 , Page(s) : 347 - 349 (2018 ) DOI : https://doi.org/10.32804/IRJMSH
सौंन्दर्य वस्तु का नहीं, व्यक्ति का धर्म है, जो इसे सोचता है, समझता है। उपर से देखने पर यह विचार बहुत विचित्र मालूम हो सकता है, किन्तु इसमें सत्य है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हर सुन्दर वस्तु बिना अन्तर के प्रत्येक मनुष्य को सुन्दर प्रस्तुत होता है, पर ऐसा नहीं होता। प्रसिद्ध दार्षनिक ह्यूम ने सौन्दर्य के विषय में कहा है कि यह वस्तु का गुण नहीं है, यह केवल उस मस्तिष्क में विद्यमान रहता है, जो उन वस्तुओं के बारे में सोचता है।